Biography Of Tulsidas In Hindi | गोस्वामी तुलसीदास की जीवन परिचय

 

Biography of Tulsidas In Hindi

Biography of Tulsidas In Hindi: गोस्वामी तुलसीदास रामभक्ति शाखा के कवियों में सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं। उन्होंने प्रमुख ग्रंथ लिखे हैं जैसे ‘रामचरितमानस’ जिसका वर्णन सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि संपूर्ण देश में विख्यात है। आप सब ने रामचरितमानस के बारे में काफी सुना होगा यह भारतीय धर्म और सांस्कृतिक को प्रतिबिंबित करने वाला एक बहुत ही आकर्षक दर्पण है। पूरे विश्व में इसे एक अनुपम एवं अतुलनीय ग्रंथ के रूप में स्वीकार भी किया है। 


गोस्वामी तुलसीदास का जीवन परिचय को न केवल भारत के कवि वर्णन सारी मानवता के लिए माना जाता है बल्कि उन्हें सारे संसार ने एक महान कवि के रूप में जाना है। तुलसीदास जी की प्रतिभा इतनी विराट थी कि उसने भारतीय संस्कृति की सारी विराटता को आत्मसात कर दिया था। उनका लिखा हुआ रामचरितमानस सारे लेखों में से सबसे महान महाकाव्य में से एक है। 

Biography Of Tulsidas In Hindi | गोस्वामी तुलसीदास की जीवन परिचय इन हिन्दी 

Goswami Tulsidas ka jivan parichay: तुलसीदास जी का पूरा नाम गोस्वामी तुलसीदास था (Biography of Tulsidas In Hindi) जिनका जन्म 1532 ईस्वी में राजापुर जिला बांदा, उत्तर प्रदेश, भारत में मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में हुआ था। जब भी हम रामचरितमानस का नाम सुनते हैं तो सबसे पहले हमारे मुख में तुलसीदास जी (Biography of tulsidas ji) का नाम जरूर आ जाता है जैसे कि तुलसीदास जी राम जी के काफी प्रिय हो। लोगों का मानना है कि तुलसीदास जी को रामायण (Tulsidas Ramayan) महाकाव्य के रचयिता महर्षि वाल्मीकि का अवतार भी कहा गया है। 


दुनिया के 100 सर्वश्रेष्ठ कवियों में से रामचरितमानस (Ramcharitmanas Goswami Tulsidas) को 46 व स्थान प्राप्त हुआ है। सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि रामचरितमानस (Tulsidas Ramcharitmanas) जैसे विश्व प्रसिद्ध ग्रंथ के सृजन एवं महान राम भक्त संत कवि गोस्वामी तुलसीदास जी के प्रारंभिक जीवन में तथ्य पूर्ण जानकारी का अभाव रहा है। आज की इस लेख में हम बात करेंगे की महान कवि तुलसीदास जी का जीवन कैसा था उनके जीवन परिचय (Goswami Tulsidas ka jivan parichay) के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे। 


पूरा नाम (Tulsidas Full Name)

गोस्वामी तुलसीदास (Goswami Tulsidas) 

बचपन का नाम (Tulsidas Childhood Name)

रामबोला

जन्म तारीख (Tulsidas Date of Birth)

1532 ई०

जन्म स्थान (Tulsidas Place of Birth) 

राजापुर जिला बांदा, उत्तर प्रदेश

पिता का नाम (Tulsidas Father Name)

श्रीधर

माता का नाम (Tulsidas Mother Name)

हुलसी

पत्नि का नाम (Tulsidas Wife Name)

रत्नावली

पुत्र का नाम (Tulsidas Son Name)

तारक

जाति (Tulsidas Cast)

ब्राह्मण

भाषा (Tulsidas Language)

ब्रजभाषा

गुरु (Tulsidas Teacher Name) 

नरहरी दास

मृत्यु (Tulsidas Death)

1623 ई०

मृत्यु का स्थान (Place of Death) 

अस्सी घाट, वाराणसी

गोस्वामी तुलसीदास की रचनाएं 

'रामचरितमानस', 'विनयपत्रिका', 'रामलला नहछू', 'जानकी मंगल’ आदि


Goswami Tulsidas Ka Janm Kab Hua |Tulsidas Birth and Birth Place

Goswami Tulsidas ka janm kab hua: गोस्वामी तुलसीदास जो (गोस्वामी तुलसीदास की जीवनी इन हिंदी) की एक महान कवि थे उनका जन्म 1532 ई. संवत 1511 में श्रावण मास की शुक्ल पक्ष के सप्तमी तिथि को हुआ था। तुलसीदास के जन्म के स्थान (Goswami Tulsidas Birth Place) को लेकर विद्वान एकमत नहीं है। 


(Biography of Tulsidas in hindi in short) कुछ विद्वानों का कहना है कि तुलसीदास जी का जन्म स्थान स्वरूप कासगंज उत्तर प्रदेश में हुआ था और कुछ विद्वानों का कहना है कि उनका जन्म उत्तर प्रदेश के बांदा जिले (चित्रकूट) में स्थित राजपुर नामक स्थान में हुआ था। आज के समय में उत्तर प्रदेश की सरकार ने इसी स्थान को आधिकारिक रूप में गोस्वामी तुलसीदास जी के जन्म का स्थान माना है। 

Goswami Tulsidas Family | तुलसीदास का परिवार  

Goswami Tulsidas Family: गोस्वामी तुलसीदास जी के दादाजी का नाम पंडित सच्चिदानंद शुक्ल था। वह एक भारद्वाज गोत्र के सनाढ्य ब्राह्मण थे। तुलसीदास जी के दादाजी के दो पुत्र हुए एक का नाम ‘पंडित आत्माराम शुक्ल’ था और दूसरे का नाम ‘पंडित जीवाराम शुक्ल’ था। पंडित आत्माराम शुक्ला दुबे तथा उनकी पत्नी हुलसी के पुत्र का नाम ही तुलसीदास पड़ा। तुलसीदास जी के चचेरे भाई का नाम नंददास था। गोस्वामी तुलसीदास जी का बचपन में नाम ‘रामबोला’ तथा ‘तुलसीराम’ था। 

Goswami Tulsidas Ji Parents | गोस्वामी तुलसीदास के माता-पिता

Goswami Tulsidas ki jivani: गोस्वामी तुलसीदास जी के माता-पिता के संबंध में कोई खास जानकारी नहीं प्राप्त है। अपनी जानकारी प्राप्त है उसके प्रमाणों के अनुसार उनके पिता का नाम ‘आत्माराम शुक्ल दुबे‘ था परंतु भविष्य पुराण की अगर हम बात करें तो उनके पिता का नाम ‘श्रीधर’ बताया गया है। रहीम के दोहे के अनुसार गोस्वामी तुलसीदास जी के माता का नाम तुलसी बताया जाता है परंतु अधिकांश विद्वान तुलसीदास का जन्म स्थान (Goswami Tulsidas Birth Place) राजापुर को मनाने के पक्ष में है। 

Goswami Tulsidas Ka Jivan Parichay | बायोग्राफी ऑफ तुलसिदास इन हिंदी

Goswami Tulsidas Biography: संवत 1532 के श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तिथि के दिन अद्भुत नक्षत्र में गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म हुआ। अगर हम प्रचलित जनश्रुति की बात करें तो उसके अनुसार शिशु 12 महीने तक मां के गर्भ में रहने के कारणअत्यधिक हुष्ट-पुष्ट था और उसके मुख में दांत दिखाई दे रहे थे। (Biography of tulsidas ji) गोस्वामी तुलसीदास के जन्म के समय पंचांग के अनुसार मूल का समय था और धार्मिक के अनुसार ऐसा माना जाता है कि इस नक्षत्र में पैदा हुए बच्चे के पिता या माता के जीवन पर खतरा होता है। 


जन्म लेने के साथ ही गोस्वामी तुलसीदास जी (Biography of Tulsidas In Hindi) ने राम नाम का उच्चारण किया जिसकी वजह से उनका नाम ‘रामबोला’ पड़ गया था। इनके जन्म के अगले दिन ही उनकी माता का स्वर्गवास हो गया अतः सारे गांव और परिवार के लोग तुलसीदास जी को अशुभ मानने लगे। उन्हें अशुभ करने की वजह से ही उनके पिता ने उनका त्याग कर दिया और उन्हें एक चुनिया नाम की दासी को दे दिया। जब रामबोला की उम्र लगभग 5 वर्ष की हुई तो इनकी पालने वाली चुनिया भी स्वर्ग को सिधार गई। उसके बाद गोस्वामी तुलसीदास जी (Goswami Tulsidas ka Jivani) अनाथों की तरह इधर-उधर भटकते हुए भिक्षा मांग कर जीवन बिताते थे फिर एक हनुमान मंदिर में जाकर रहने लगे। 


फिर भगवान शंकर जी की प्रेरणा से रामशैल पर रहने वाले श्री अनन्तानन्द जी के प्रिय शिष्य श्री श्रीनरहर्यानन्द जी जिनका नाम ‘नरहरि बाबा’ भी था उन्होंने रामबोला नाम के बालक यानी कि वह गोस्वामी तुलसीदास जी को ढूंढ निकाला और विधिवत उनका नाम तुलसीदास रख दिया। उसके बाद उन्हें अयोध्या ले गए और वहां संवत 1561 माघ शुक्ल पंचमी को उसका यज्ञोपवीत संस्कार संपन्न कराया। 


विचित्र बात तो यह है कि संस्कार के समय बिना कुछ सिखाई ही गोस्वामी तुलसीदास जी ने गायत्री मंत्र का स्पष्ट उच्चारण कर दिया जिसे देखकर सब लोग चकित रह गए। इसके बाद नरहरि बाबा ने वैष्णव के पांच संस्कार करके बालक को राम मंत्र की दीक्षा दी और अयोध्या में ही रहकर उसे विद्याध्ययन कराया। वही अयोध्या के आश्रम में उनकी शिक्षा होती रही बाद में उन्होंने काशी में शिक्षा ग्रहण की फिर उनका विवाह हो गया एक ‘रत्नावली’ नाम की युवति से। गोस्वामी तुलसीदास जी अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करते थे।

Goswami Tulsidas Ka Sahityik Parichay| गोस्वामी तुलसीदास जी का साहित्यिक परिचय 

Goswami Tulsidas ka sahityik parichay: गोस्वामी तुलसीदास जी लगभग 14 वर्ष तक पूरे भारत में अलग-अलग तीर्थ का भ्रमण करते हुए भगवान राम की खोज में भटकते रहे वह चाहते थे कि वह भगवान राम से मिले। उन्होंने स्वयं को पूर्ण रूप से आध्यात्मिकता में लगा दिया था। यही वजह थी कि उन्होंने तीर्थ यात्रा के दौरान अनेक साधु संतों से शिक्षा ग्रहण की तथा अलग-अलग स्थान पर लोगों को शिक्षा देने लगे। वह तीर्थ यात्रा के दौरान वाराणसी प्रयाग अयोध्या व चित्रकूट में रहे और इसी स्थान पर इन्हें राम के दर्शन भी हुए और तभी से इन्होंने रामायण की रचना (Tulsidas Ramayan) करने की प्रेरणा कर ली। 


(बायोग्राफी ऑफ गोस्वामी तुलसीदास इन हिंदी) गोस्वामी तुलसीदास जन्म से ही सरयूपारीण ब्राह्मण थे और इनको वाल्मीकि ऋषि का अवतार माना जाता है। वाल्मीकि ऋषि ने संस्कृत में रामायण (Ramayan Tulsidas) की रचना की थी। गोस्वामी तुलसीदास जी (गोस्वामी तुलसीदास की जीवनी इन हिंदी) का बचपन गरीबी और कष्ट में गुजरा था। गोस्वामी तुलसीदास जी भगवान राम के सच्चे भक्त थे और शूकर क्षेत्र में अपने (Goswami Tulsidas ke guru kaun the) गुरु नरहरी दास से शिक्षा ग्रहण करते थे। तुलसीदास जी का विवाह बुद्धिमती नाम की युति से हुआ था जिन्हें रत्नावली के नाम से भी जाना जाता था। उनके विवाह के बाद उनका ‘तारक’ नाम का एक पुत्र भी हुआ था। 


तुलसीदास का कोई भी नहीं था इस वजह से उनकी भावनाएं पूरी तरह से अपनी पत्नी से जुड़ी हुई थी उन दोनों से संबंधित एक कहानी भी बहुत प्रचलित है। कहानी इस प्रकार है कि वह अपनी पत्नी से इतना ज्यादा प्रेम करते थे कि वह अपने ससुराल के बगल का घर लेकर रहने लगे थे। जब यह बात रत्नावली को पता चली तो उन्होंने गोस्वामी तुलसीदास जी का तिरस्कार करते हुए कहा जितना प्रेम मुझे करते हो उतना प्रेम भगवान राम से करना चाहिए यह सब सुनकर तुरंत ही तुलसीदास जी ने मोह माया छोड़कर एक तपस्वी का जीवन व्यतीत करने का फैसला किया। 


(Goswami Tulsidas ki Jivani) गोस्वामी तुलसीदास जी कई दिनों तक अयोध्या में ठहरे। वह वही स्थान था जहां उन्होंने भगवान राम के दर्शन किए थे फिर उन्होंने उनको अवधी भाषा में रामायण (Tulsidas Ramayana) के रचना के लिए प्रेरित किया जो उसे समय लोगों द्वारा बोली जाने वाली सामान्य भाषा थी। गोस्वामी तुलसीदास जी ने 1574 में अपना लेखन कार्य शुरू किया और कई साहित्यिक कृतियां लिखी हालांकि उनकी सबसे महान कृति रामचरितमानस (Ramcharitmanas Goswami Tulsidas) है। उन्होंने राम के कार्यों का विवरण किया है यही कारण है कि उन्हें महाकाव्य भी कहा गया है। 


रामचरितमानस (Ramcharitmanas Goswami Tulsidas) में उन्होंने बहुत ही सुंदर कविताएं लिखी हुई है जिनको चौपाई के नाम से आज जाना जाता है। उन्होंने यह कविताएं केवल भगवान राम को समर्पित की है। गोस्वामी तुलसीदास जी (Biography of Tulsidas In Hindi) ने अपने आप को भगवान राम को समर्पित करके उद्धार प्राप्त करने के रास्ते पर बल दिया। गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित कुछ अन्य महान साहित्यिक कृतियों में दोहावली, कवितावली, गीतावली, कृष्णावली, विनयपत्रिका और देव हनुमान की स्तुति की गई बहुत सम्मानित कविता हनुमान चालीसा भी लिखी गई है। 


उनकी लघु रचनाओं में वैराग्य संदीपनी, बरवै रामायण, जानकी मंगल, रामलला नहछू, पार्वती मंगल और संकट मोचन भी शामिल है। गोस्वामी तुलसीदास की रचनाओं की मुगल शासक अकबर और जहांगीर ने भी प्रशंसा की थी। जब 1623 तुलसीदास जी 112 वर्ष की आयु के हो गए थे तब पवित्र शहर बनारस में उन्होंने परलोक सिधार लिया। आज भी सारे भारतवासी गोस्वामी तुलसीदास जी के लेखन में उनकी गहन भक्ति और दार्शनिक विचारधाराओं का एकीकरण करते हैं। 


गोस्वामी तुलसीदास जी ऐसी उत्कृष्ट साहित्य रचना करने के लिए सबसे महान हिंदी कवियों में से एक बन गए। तुलसीदास जी हिंदी साहित्य के महान विभूतियों में से एक है वह भक्ति काल में एक महान कवि और रचनाकर्ता भी थे। गोस्वामी तुलसीदास जी समस्त मानव जाति को प्रेम पूर्वक रहने और अपने जीवन को प्रभु श्री राम के जीवन की तरह ढलने और उनके आदर्शों पर ही चलने का ज्ञान देते रह गए। 

Goswami Tulsidas Ke Guru Kaun The? गोस्वामी तुलसीदास के गुरु कौन थे?

(बायोग्राफी ऑफ गोस्वामी तुलसीदास इन हिंदी) गोस्वामी तुलसीदास के गुरु का नाम श्री नरहरी शास्त्री था जिन्हें नरहर्यानन्द जी भी कहा गया है। उनकी दृष्टि जब तुलसीदास जी पर पड़ी तो उन्होंने तुलसीदास के भीतर छिपी अलौकिक प्रतिभाओं को पहचान और इन्हें अपने साथ अयोध्या लेकर चले गए। वहां पर उन्होंने तुलसीदास का यज्ञोपवीत संस्कार कराया तथा उनका शिक्षण कार्य भी शुरू कर दिया। हमने आप सबको बताया कि संस्कार के समय तुलसीदास ने बिना सिखे ही गायत्री मंत्र का स्पष्ट उच्चारण कर के सबको आश्चर्यचकित कर दिया था। 


(Biography of tulsidas ji) यहां पर तुलसीदास जी ने सन्यासी भेज धारण करते हुए बैरागी की दीक्षा ली ऐसा माना जाता है कि यही उन्हें तुलसीदास का नाम भी मिला था। जब तुलसीदास जी की उम्र 7 वर्ष हुई तब उनके गुरु नर हरिदास जी ने उनका उपनयन कर्म किया। गोस्वामी तुलसीदास के गुरु उन्हें कुछ समय बाद वराह क्षेत्र ल ले गए जहां पर पहली बार नरहरी दास जी ने उन्हें रामायण (Tulsidas Ramayana) सुनाई। उसके बाद तुलसीदास जी हमेशा रामायण (Ramayan Tulsidas) सुना करते थे धीरे-धीरे उन्हें यह समझ में भी आने लगी।


तुलसीदास जी काशी नगरी में कालांतर हिंदू दर्शन स्कूल में गुरु से सनातन जी के साथ रहकर 15 वर्षों तक उनसे संस्कृत व्याकरण, वेद और पुराणों का अध्ययन किया करते थे तथा ज्योतिष के भी शिक्षा (Tulsidas education in Hindi) ग्रहण कर ली। शेष सनातन जी तुलसीदास के गुरु नरहरी दास के मित्र भी थे तथा साहित्य और दर्शनशास्त्र के प्रकंड विद्वान भी थे। अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद तुलसीदास जी अपने जन्म स्थान राजापुर वापस चले गए। 


फिर वहां उन्हें पता चला कि उनके पिता का भी देहांत हो गया है। फिर अपने माता-पिता का श्राद्ध करके वह अपने पैतृक घर में ही रहने लगे और चित्रकूट में लोगों को रामायण (Tulsidas Ramayan) की कथा भी सुनाया करते थे। गोस्वामी तुलसीदास जीअपने गुरु नरहरि जी से बचपन की उम्र से ही राम कथा सुन चुके थे तथा तब से ही राम भक्ति की भावना और वैराग्य संस्कार उनके भीतर जगने लगे थे। लेकिन फिर भी गोस्वामी तुलसीदास जीने बहुत अल्पावधि के लिए गृहस्थ आश्रम में प्रवेश किया। 

Goswami Tulsidas Par Nibandh | गोस्वामी तुलसीदास पर निबंध

(Biography of tulsidas in hindi in short) ऐतिहासिक जानकारी और साक्षी के आधार पर अगर हम बात करें तो गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म 1511 ईस्वी में कासगंज के उत्तर प्रदेश में एक सर्यूपारिय ब्राह्मण परिवार के घर में हुआ था। लेकिन कुछ विद्वानों का मानना है कि तुलसीदास जी का जन्म राजापुर जिले के चित्रकूट में हुआ था। मुगल शासक अकबर को तुलसीदास जी का समकालीन सम्राट भी माना जाता है। गोस्वामी तुलसीदास जी की माता हुलसी एक आध्यात्मिक महिला एवं गृहणी थी। 


जैसा कि हमने आप सबको बताया की गोस्वामी तुलसीदास जी का प्रारंभिक जीवन बहुत ही कष्ट से गुजरा और उनका पालन-पोषण, शिक्षा-दीक्षा प्रसिद्ध संत बाबा नरहरी दास जी के देख-रेख में हुआ जो उनके गुरु भी बने। वहां पर गोस्वामी तुलसीदास जी ने भक्ति और ज्ञान की शिक्षा ग्रहण की अपनी शिक्षा (Tulsidas education in Hindi) पूरी होने पर वह पुनः अपने गांव राजापुर चले गए। 


जहां पर उनका विवाह दीनबंधु पाठक की बेटी (Goswami Tulsidas wife name) रत्नावली पाठक से हो गया। उन्हें अपनी पत्नी के प्रति बहुत प्रेम और स्नेह था वह उनसे एक पल भी दूर नहीं रहना चाहते थे। एक बार की बात है जब उनकी पत्नी अपने मायके यानी कि पिता के घर चली गई थी फिर तुलसीदास जी को उनकी दूरी बर्दास्त नहीं हुई तो यह उनसे मिलने उनके घर आधी रात को अपनी हुई नदी को पार करके पहुंच गए। उनकि इस बर्ताव की वजह से उनके ससुराल वाले बहुत ही ज्यादा दुखी हुए। 


(Goswami Tulsidas wife name) गोस्वामी तुलसीदास जी की पत्नी रत्नावली को भी बहुत ही लज्जा हुई और वह उन्होंने क्रोधित होते हुए कहा -


अस्थि चर्म मय देह यह, ता सो ऐसी प्रीति|

नेकु जो होती राम से, तो कहे भव-भीत ||


अर्थ- इस हाड-मास के शरीर के प्रति आपकी इतनी ज्यादा श्रद्धा और प्रेम है अगर इसका आधा भी श्री राम के प्रति करते तो भगवान आपको स्वयं आकर दर्शन देते। 


अपनी पत्नी रत्नावली के मुख से ऐसी तिरस्कार भरी बात सुनकर उनका खिन्न हो गया और वह उसी समय से अपने गृहस्थ जीवन को त्याग कर भगवान राम की भक्ति में लग गए। फिर वह सारी दुनिया घूम-घूमकर भगवान श्री राम का गुणगान करने लगे। गोस्वामी तुलसीदास जी का सर्वाधिक समय अयोध्या, चित्रकूट और काशी में बीतने लगा। 


गोस्वामी तुलसीदास जी अपने मृत्यु के समय काशी चले गए और विक्रम संवत में 1632 में अपने जीवन को अस्सी घाट पर त्याग दिया और फिर मोक्ष की प्राप्ति कर ली। उनकी मृत्यु से संबंधित एक बहुत ही प्रचलित (Tulsidas Ke Dohe in hindi) दोहा है:-


संवत सोलह सौ अस्सी, अस्सी गंग के तीर | 

श्रावण कृष्ण तृतीया, तुलसी तज्यो शरीर ||

Goswami Tulsidas Ki Rachna | गोस्वामी तुलसीदास की रचनाएँ

Goswami Tulsidas ki rachna: गोस्वामी तुलसीदास जी ने कई महत्वपूर्ण पुस्तकों की रचना की जिसमें उनका सर्वाधिक लोकप्रिय और प्रसिद्ध ग्रंथ रामचरितमानस है। रामचरितमानस को उन्होंने बहुत ख्याति दिलाई और उनके कुछ महत्वपूर्ण ग्रंथ इस प्रकार हैं:


रामचरित मानस: (Ramcharitmanas Goswami Tulsidas) इस ग्रंथ में गोस्वामी तुलसीदास जी ने प्रभु श्री राम के संपूर्ण जीवन की गोस्वामी तुलसीदास की व्याख्या अवधी भाषा में लिखी है (Biography of Goswami Tulsidas book)। उन्होंने उनके जीवन का इतना सटीक और मार्मिक वर्णन किया है कि कोई भी इसे पढ़ कर भाव- विभोर हो सकता है।


सियाराम मै सब जग जानि,

करउ प्रणाम जोरि जुग पानि  ||


विनय न मानत जलधि जड़ गए तीन दिन बीत,

उठेउ राम सकोप तब भय बिनु होत न प्रीत  ||


जानकी मंगल: इस ग्रंथ में तुलसीदास जी ने श्री राम और सीता जी के मंगल विवाह का वर्णन किया है यह भी रामचरितमानस के ही सामान है। रामचरितमानस के और जानकी मंगल केबहुत सारे शब्द मिलते जुलते हैं इसमें उन्होंने सीता स्वयंवर से लेकर अयोध्या वापसी तक का बड़ा ही सरस वर्णन किया है। Tulsidas ji ke dohe:


सुभ दिन रच्यो स्वयम्बर मंगलदायक |

सुनत श्रवन हिय बसहि से रघुनायक ||


देस सुहावन पावन बीएड बखानिय |

भूमि तिलक सैम तिरहुति त्रिभुवन जानिय || 


पार्वती-मंगल: इसमें गोस्वामी तुलसीदास जी ने माता पार्वती जी के द्वारा भगवान शंकर को प्राप्त करने के लिए किए गए तप और उनके प्रकार उठाये कष्टों का बहुत ही सजीव वर्णन किया है। तुलसीदास जी ने माता पार्वती जी के तपस्या का बहुत ही मार्मिक और सजीव वर्णन किया है। 


विनय गुरहि गुनिगिनही गिरिह गननाथाहि |

ह्रदय आनी सिय राम धरे धनु भाथहि || 


गावउ गौरि गिरिश विवाह सुहावन |

पाप नसावन पावन मुनि मन भवन || 


इसके अलावा गोस्वामी तुलसीदास की रचनाएँ हैं जैसे - 'रामचरितमानस', 'विनयपत्रिका', 'रामलला नहछू', 'जानकी मंगल', 'पारवती मंगल', 'गीतावली', 'बरवै रामायण', 'दोहावली', 'कवितावली', 'हनुमान बाहुक' (गोस्वामी तुलसीदास जी हनुमान बाहुक - कवि) और 'वैराग्य संदीपनी' आदि। गोस्वामी तुलसीदास जी एक महान कवि थे उनकी प्रतिभा-किरणों से न केवल हिंदू समाज और भारत बल्कि समस्त संसार आलोकित है। 


गोस्वामी तुलसीदास जी (Biography of Tulsidas in Hindi) को ब्रज तथा अवधि दोनों पर सम्मान अधिकार मिला हुआ है। 'रामचरितमानस’ उनकी प्रसिद्धि और लोकप्रियता का सबसे बड़ा आधार है। उन्होंने रामचरितमानस में राम के गोस्वामी तुलसीदास की व्याख्या की है और 'विनयपत्रिका’ मैं उन्होंने अपनी भक्ति भावना को सुमधुर गीतों में दर्शाया है। 


गोस्वामी तुलसीदास जी श्रीसम्प्रदाय के आचार्य रामानंद की शिष्यपरम्परा भी रहे हैं। उन्होंने समय को देखते हुए उसके अनुसार लोकसभा में रामायण (Tulsidas Ramayan) लिखा इसमें ब्याज और वर्णाश्रमधर्म, अवतारवाद, साकार उपासना, सगुणवाद, गो-ब्राह्मण रक्षा, देवादि विविध योनियों का यथोचित सम्मान एवं प्राचीन संस्कृति और वेदमार्ग का मण्डन और साथ में ही विधर्मी अत्याचारों और सामाजिक देशों की एवं पंतवाद की आलोचना भी की गई। 

Goswami Tulsidas Ke Tulsidas Poet| गोस्वामी तुलसीदास की कविताएँ 

Goswami Tulsidas Biography pdf: हमने आपको गोस्वामी तुलसीदास जी (Poem of Goswami Tulsidas ji) की कुछ कविताएं बताइ जो इस प्रकार हैं:-

तुलसीदास कविता-1

अवधेस के द्वारे सकारे गई सुत गोद में भूपति लै निकसे।

अवलोकि हौं सोच बिमोचन को ठगि-सी रही, जे न ठगे धिक-से॥ 

‘तुलसी’ मन-रंजन रंजित-अंजन नैन सुखंजन जातक-से।

सजनी ससि में समसील उभै नवनील सरोरुह-से बिकसे॥

तन की दुति श्याम सरोरुह लोचन कंज की मंजुलताई हरैं।

अति सुंदर सोहत धूरि भरे छबि भूरि अनंग की दूरि धरैं॥

दमकैं दँतियाँ दुति दामिनि ज्यों किलकैं कल बाल बिनोद करैं।

अवधेस के बालक चारि सदा ‘तुलसी’ मन मंदिर में बिहरैं॥

सीस जटा, उर बाहु बिसाल, बिलोचन लाल, तिरीछी सी भौंहैं।

तून सरासन-बान धरें तुलसी बन मारग में सुठि सोहैं॥

सादर बारहिं बार सुभायँ, चितै तुम्ह त्यों हमरो मनु मोहैं।

पूँछति ग्राम बधु सिय सों, कहो साँवरे-से सखि रावरे को हैं॥

सुनि सुंदर बैन सुधारस-साने, सयानी हैं जानकी जानी भली।

तिरछै करि नैन, दे सैन, तिन्हैं, समुझाइ कछु मुसुकाइ चली॥

‘तुलसी’ तेहि औसर सोहैं सबै, अवलोकति लोचन लाहू अली।

अनुराग तड़ाग में भानु उदै, बिगसीं मनो मंजुल कंजकली॥

तुलसीदास कविता-2

हनुमान चालीसा | Tulsidas Hanuman chalisa story

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर

जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥

राम दूत अतुलित बल धामा

अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥

महावीर विक्रम बजरंगी

कुमति निवार सुमति के संगी॥

कंचन बरन बिराज सुबेसा

कानन कुंडल कुँचित केसा॥

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजे

काँधे मूँज जनेऊ साजे॥

शंकर सुवन केसरी नंदन

तेज प्रताप महा जगवंदन॥

विद्यावान गुनी अति चातुर

राम काज करिबे को आतुर॥

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया

राम लखन सीता मन बसिया॥

सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा

बिकट रूप धरि लंक जरावा॥

भीम रूप धरि असुर सँहारे

रामचंद्र के काज सँवारे॥

लाय संजीवन लखन जियाए

श्रीरघुबीर हरषि उर लाए॥ 

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई

तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥

सहस बदन तुम्हरो जस गावै

अस कहि श्रीपति कंठ लगावै॥

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा

नारद सारद सहित अहीसा॥

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते

कवि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा

राम मिलाय राज पद दीन्हा॥

तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना

लंकेश्वर भये सब जग जाना॥

जुग सहस्त्र जोजन पर भानू

लिल्यो ताहि मधुर फ़ल जानू॥

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं

जलधि लाँघि गए अचरज नाहीं॥

दुर्गम काज जगत के जेते

सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥

राम दुआरे तुम रखवारे

होत ना आज्ञा बिनु पैसारे॥

सब सुख लहैं तुम्हारी सरना

तुम रक्षक काहु को डरना॥

आपन तेज सम्हारो आपै

तीनों लोक हाँक तै कापै॥

भूत पिशाच निकट नहिं आवै

महावीर जब नाम सुनावै॥

नासै रोग हरे सब पीरा

जपत निरंतर हनुमत बीरा॥

संकट तै हनुमान छुडावै

मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥

सब पर राम तपस्वी राजा

तिन के काज सकल तुम साजा॥

और मनोरथ जो कोई लावै

सोई अमित जीवन फल पावै॥

चारों जुग परताप तुम्हारा

है परसिद्ध जगत उजियारा॥

साधु संत के तुम रखवारे

असुर निकंदन राम दुलारे॥

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता

अस बर दीन जानकी माता॥

है। राम रसायन तुम्हरे पासा

सदा रहो रघुपति के दासा॥

तुम्हरे भजन राम को पावै

जनम जनम के दुख बिसरावै॥

अंतकाल रघुवरपुर जाई

जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई॥

और देवता चित्त ना धरई

हनुमत सेई सर्व सुख करई॥

संकट कटै मिटै सब पीरा

जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥

जै जै जै हनुमान गोसाई

कृपा करहु गुरु देव की नाई॥

जो सत बार पाठ कर कोई।

छूटहिं बंदि महा सुख होई॥

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।

होय सिद्धि साखी गौरीसा॥

तुलसीदास सदा हरि चेरा।

कीजै नाथ हृदय मह डेरा॥


तुलसीदास कविता-3

हरि! तुम बहुत अनुग्रह किन्हों।

साधन-नाम बिबुध दुरलभ तनु, मोहि कृपा करि दीन्हों॥

कोटिहुँ मुख कहि जात न प्रभुके, एक एक उपकार।

तदपि नाथ कछु और माँगिहौं, दीजै परम उदार॥

बिषय-बारि मन-मीन भिन्न नहिं होत कबहुँ पल एक।

ताते सहौं बिपति अति दारुन, जनमत जोनि अनेक॥

कृपा डोरि बनसी पद अंकुस, परम प्रेम-मृदु चारो।

एहि बिधि बेगि हरहु मेरो दुख कौतुक राम तिहारो॥

हैं स्त्रुति बिदित उपाय सकल सुर, केहि केहि दीन निहोरै।

तुलसीदास यहि जीव मोह रजु, जोइ बाँध्यो सोइ छोरै॥

तुलसीदास कविता-4

तुलसी ने मानस लिखा था जब जाति-पाँति-सम्प्रदाय-ताप से धरम-धरा झुलसी।

झुलसी धरा के तृण-संकुल पे मानस की पावसी-फुहार से हरीतिमा-सी हुलसी।

हुलसी हिये में हरि-नाम की कथा अनन्त सन्त के समागम से फूली-फली कुल-सी।

कुल-सी लसी जो प्रीति राम के चरित्र में तो राम-रस जग को चखाय गये तुलसी।

तुलसीदास कविता-5

अबलौं नसानी, अब न नसैहौं।

राम-कृपा भव-निसा सिरानी, जागे फिरि न डसैहौं।

पायेउ नाम चारू चिंतामनि, उर-कर तें न खसैहों।

स्यामरूप सुचि रूचिर कसौटी, चित कंचनहिं कसैहौं।

परबस जानि हँस्यो इन इंद्रिन, निज बस ह्वै न हँसैहौं।

मन-मधुकर पनक तुलसी रघुपति-पद-कमल बसैहौं।

तुलसीदास कविता-6

माधव, मोह-पास क्यों छूटै

माधव, मोह-पास क्यों छूटै।

बाहर कोट उपाय करिय अभ्यंतर ग्रन्थि न छूटै।।

घृतपूरन कराह अंतरगत ससि प्रतिबिम्ब दिखावै।

ईंधन अनल लगाय कल्पसत औंटत नास न पावै।।

तरु-कोटर मँह बस बिहंग तरु काटे मरै न जैसे।

साधन करिय बिचारहीन मन, सुद्ध होइ नहिं तैसे।।

अंतर मलिन, बिषय मन अति, तन पावन करिय पखारे।

मरै न उरक अनेक जतन बलमीकि बिबिध बिधि मारे।।

तुलसीदास हरि गुरु करुना बिनु बिमल बिबेक न होई।

बिनु बिबेक संसार-घोरनिधि पार न पावै कोई।।

The Most Famous Book Written By Tulsidas| गोस्वामी तुलसीदास जी की प्रसिद्ध पुस्तकें

Biography of Tulsidas book: गोस्वामी तुलसीदास की गायनात्मक शैली और हिंदू धर्म दर्शन की उनकी गहरी समझना उनकी (Biography of Goswami Tulsidas book) किताबों को हिंदी साहित्य की सबसे प्रिय और प्रभावशाली कृतियों में से एक माना है। उनका महत्वपूर्ण काव्य मानव और परमात्मा के बीच के जटिल संबंधों की पड़ताल करता है और प्रेम भक्ति और मोक्ष की प्रकृति पर गहन चिंतन भी प्रस्तुत करता है। अपने नीचे गोस्वामी तुलसीदास के प्रसिद्ध किताबों (the Most Famous Book Written By Tulsidas) की लिस्ट बनाई है जो इस प्रकार हैं:


रामचरितमानस: गोस्वामी तुलसीदास जी ने जितनी भी पुस्तकें लिखी उनमें से सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ रामचरितमानस है। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने यह पुस्तक भगवान हनुमान के निर्देशों की तहत लिखी थी। हिंदू धर्म में हर घर में रामचरितमानस पाठ और पूजन बड़ी ही श्रद्धा से किया जाता है।  


दोहावली: तुलसीदास ने अपनी इस पुस्तक में कम से कम 573 विविध दोहों (Tulsidas Ji ke dohe) का संग्रह किया है। इस ग्रंथ में लगभग 85 दोहों को रामचरितमानस से भी शामिल किया गया है। 


कवितावली: इस पुस्तक में ब्रज भाषा की कविताओं का संग्रह है। रामचरितमानस जैसे महाकाव्य की तरह इसमें भी सात कांड यानी कि सात अध्याय और कई प्रसंग है। 


गीतावली: गोस्वामी तुलसीदास जी के इस पुस्तक में 328 बज गीतों का संग्रह है जो सात अध्याय में विभाजित किया गया है। सभी हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत पर यह पुस्तक आधारित है। 


श्री कृष्ण गीतावली: यह तुलसीदास की एकमात्र पुस्तक है जिसमें विशेष रूप से भगवान श्री कृष्ण के लिए 61 ब्रज गीतों का संग्रह किया गया है। 61 में से 32 गाने कृष्ण के बचपन और रासलीला के बारे में है।


हनुमान चालीसा: रामचरितमानस (Tulsidas Ramcharitmanas) के अलावा तुलसीदास जी ने हिंदू धर्म में सबसे प्रसिद्ध और पढ़े जाने वाले साहित्य हनुमान चालीसा (Tulsidas Hanuman chalisa) का उल्लेख किया। यह पुस्तक राम के प्रति हनुमान की भक्ति की प्रशंसा करने वाली कविता है कई हिंदू धर्म इसे प्रतिदिन प्रार्थना के रूप में पढ़ते हैं।  


विनय पत्रिका: विनय पत्रिका भी तुलसीदास की सर्वाधिक लोकप्रिय रचना है जिसमें भजनों और प्रार्थनाओं की एक श्रृंखला है। विनय पत्रिका में पहले 43 राम के दरबार और सेवकों को बनाने वाले देवताओं को संबोधित हैऔर बाकी संख्या 44 से 279 तक राम को संबोधित है। 


बरवै रामायण: “बरवै” नामक काव्य शैली में संक्षिप्त हैजिसमें दो पंक्ति के दोहे हैं।यहां राम की दिव्य कथा को केवल मुख्य घटनाओं का हवाला देकर बताया गया है। इस किताब में श्री राम के पवित्र नाम का महत्व है। 


पार्वती मंगल: इस पुस्तक में अवधी भाषा में माता पार्वती और भगवान शिव के विवाह का संक्षिप्त वर्णन किया गया है जिसमें 164 छंदों का संग्रह किया गया है। 


जानकी मंगल: गोस्वामी तुलसीदास जी की इस पुस्तक में हिंदी अवधी भाषा में सीता और राम के विवाह का वर्णन करने वाले 216 छंदों का भी संग्रह है। 


रामलला नहछू: 20 छंदो की इस लघु पुस्तक में गोस्वामी तुलसीदास जी ने अवधी भाषा में बालक राम के नहछू अनुष्ठान यानी कीमुंडन से पहले पैरों के नाखून काटने का वर्णन किया गया है। 


रामाज्ञा प्रश्न: गोस्वामी तुलसीदास जी की एक कहानी लोकप्रिय पुस्तक में अवधी भाषा में 7 अध्याय और 343 दोहों से युक्त राम की इच्छा का वर्णन किया गया है। 


वैराग्य सांदीपनि: गोस्वामी तुलसीदास जी की इस लघु पुस्तक में ब्रजभाषा में 60 छंद है जो बोध और त्याग यानी की वैराग्य की स्थिति की गोस्वामी तुलसीदास की व्याख्या करते हैं। 

Devotional Spirit Of Goswami Tulsidas| गोस्वामी तुलसीदास की भक्ति भावना

Biography of Tulsidas In Hindi

Goswami Tulsidas ki bhakti bhavna: गोस्वामी तुलसीदास की भक्ति भावना या गोस्वामी तुलसीदास भक्ति काल की शगुण भक्ति धारा के अंतर्गत आने वाली राम काव्यधारा के प्रतिनिधि कवि हैं। तुलसीदास जी ने अपने सभी काव्य-ग्रन्थों में राम के प्रति अनन्य भक्ति भाव व्यक्त किया है यही वजह है कि उन्हें राम का एक एकनिष्ठ एवं अनन्य भक्त कहा गया है। उनके दोहे में वे चातक को प्रेम और भक्ति का परम आदर्श मानते हुए कहते हैं:


एक भरोसो एक बल एक आस बिस्वास 

एक राम घनस्याम हित चातक तुलसीदास ॥ 


इस दोहे के आधार के अनुसारवह अपने इष्ट देव राम के प्रति उनके मन में अनन्य प्रेम, भक्ति-भाव, श्रद्धा, विश्वास एवं भरोसे को दर्शाते हैं। श्रद्धा और विश्वास ही तुलसीदास जी की भक्ति का मेरुदंड है। रामचरितमानस एवं विनय पत्रिकादोनों ही काव्य ग में तुलसीदास जी की भक्ति भावना अभिव्यक्त हुई है। 


Goswami Tulsidas Biography pdf: गोस्वामी तुलसीदास जी (Goswami Tulsidas ka Jivani) की भक्ति दास से भाव की भक्ति है।वह अपने प्रभु श्री राम के प्रति पूरे रूप से समर्पित है और राम को अपना स्वामी तथा स्वयं को राम का सेवक मानते थे। उन्होंने रामचरितमानस में स्पष्ट घोषणा की है कि 'सेवक-सेव्य’ भाव के बिना कोई भी इंसान इस संसार सागर से तर नहीं सकता इसके दोहे (Tulsidas Dohe) इस प्रकार हैं: 


सेवक-सेव्य भाव बिनु भव न तरिअ उरगारि ।


(Biography of Tulsidas in Hindi) विनय पत्रिका में गोस्वामी तुलसीदास जी की भक्ति पद्धति की अधिक स्पष्टता से अभिव्यक्ति हुई है। उन्होंने यह स्पष्ट घोषणा की है की:-


ब्रह्म तू है जीव हौं तू ठाकुर हौं चेरो । 

तात-मात गुरु सखा तू सब विधि हितु मेरो ॥ 


गोस्वामी तुलसीदास जी की इस भक्ति में 'दैन्य’ की प्रधानता है। इसी दैन्य के कारण वह अपने इष्ट देव राम को महान एवं सर्वगुण संपन्न तथा स्वयं को तुच्छ, छोटा, खोटा, दास और पापी मानते थे। वह अपने आत्म निवेदन की इस प्रवृत्ति के कारण कहते हैं : 


"राम सौं बड़ो है कौन मोसो कौन छोटो ? 

राम सौं खरो है कौन मोसो कौन खोटो ?"

 

गोस्वामी तुलसीदास जी की भक्ति पद्धति में नवधा भक्ति का पूर्ण स्वरूप दृष्टिगोचर होता है। नवधा भक्ति के अंतर्गत श्रवण, कीर्तन, पाद सेवन, अर्चना, बन्दना, दास्य, नाम स्मरण और आत्म निवेदन आते हैं। गोस्वामी तुलसीदास जी ने राम नाम की महिमा का प्रतिपादन स्थान-स्थान पर किया है उनका कहना है कि: 


राम जपु राम जपु राम जपु बावरे 

घोर भव नीर निधि नाम निज नाव रे॥ 


वे शक्तिशाली है, अत्यंत शीलवान है और करोड़ों कामदेव से भी अधिक सौंदर्य संपन्न है। इसी प्रकार तुलसीदास जी राम शक्ति, शील एवं सौंदर्य के भंडार हैं। पूरे जगत के स्वामी है तथा ईश्वर (परमात्मा) रूप में अनादि, अविकारी, अजन्मा, परब्रह्म हैं। गोस्वामी तुलसीदास जी की भक्ति पद्धति में विनय की सातों भूमिकाएं दैन्य, मानमर्षता, भयदर्शना, भर्त्सना, आश्वासन, मनोराज्य एवं विचारणा का समावेश है। 


दैन्य नामक प्रथम भूमिका में भक्त अपने को तुच्छ एवं प्रभु को महान मानते हुए प्रभु से प्रार्थना करता है कि वह अपने भक्त को शरण में ले ली तथा अपनी शरण में ही रखें। जब भक्त अभियान शून्य होकर अपने इष्ट देव के समीप जाने का निश्चय कर लेता है तो उसे मानमर्षता कहा जाता है। अपने जीव को भय दिखाकर प्रभु की शरण में जाने के लिए प्रेरित करना भयदर्शना है।

Goswami Tulsidas Ke Dohe With Meaning | गोस्वामी तुलसीदास के दोहे और अर्थ 

यहां नीचे में हमने (Goswami Tulsidas Ke Dohe) गोस्वामी तुलसीदास के 10 दोहे अर्थ सहित दिये हैः 


दुर्जन दर्पण सम सदा, करि देखौ हिय गौर। 

संमुख की गति और है, विमुख भए पर और॥ 


अर्थ- (Tulsidas Dohe in hindi) इस दोहे का अर्थ है दुर्जन शीशे के समान होते हैं इस बात को ध्यान से देख लो क्योंकि दोनों ही जब सामने होते हैं तब तो और होते हैं और जब पीछे-पीछे होते हैं तब कुछ और ही हो जाते हैं। इसका भावार्थ यह है की दुष्ट पुरुष सामने तो मनुष्य की प्रशंसा करता है लेकिन पीठ पीछे बुराई करता है इसी प्रकार शिशा भी जब सामने होता है तो वह मनुष्य के मुख को प्रतिबिंबित करता है और जब वह पीठ पीछे होता है तो प्रतिबिंबित नहीं करता। 


‘तुलसी’ काया खेत है, मनसा भयौ किसान। 

पाप-पुन्य दोउ बीज हैं, बुवै सो लुनै निदान॥ 


अर्थ- तुलसीदास के दोहे pdf/ Tulsidas Ke Dohe in hindi में गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं की शरीर मानव खेत है और मन मानों की किसान है। जिसमें किस पाप और पुण्य रूपी दो बीजों को बोता है जैसे बीज बोएगा वैसे ही उसे अंत में फल काटने को मिलेगा। यह कहने का अर्थ यह है कि मनुष्य शुभ कर्म करेगा तो उसे शुभ फल ही मिलेंगे और यदि पाप कर्म करेगा तो उसका फल भी उसे बुरा ही मिलेगा। 

 

अमिय गारि गारेउ गरल, नारी करि करतार। 

प्रेम बैर की जननि युग, जानहिं बुध न गँवार॥ 


अर्थ-  इस दोहे (Tulsidas dohe) में उनका अर्थ है कि भगवान ने स्त्री को अमृत और प्रेम दोनों में सानकर बनाया है। स्त्री वैर और प्रेम दोनों की जननी है इस बात को बुद्धिमान पुरुष जानते हैं किंतु गँवार पुरुष नहीं। 


‘तुलसी’ साथी विपति के, विद्या, विनय, विवेक। 

साहस, सुकृत, सुसत्य-व्रत, राम-भरोसो एक॥ 


अर्थ- गोस्वामी तुलसीदास जी के दोहे (Tulsidas Dohe in hindi) में वो कहते हैं कि विद्या, विनय, ज्ञान, उत्साह, पुण्य और सत्य भाषण आदि विपत्ति में साथ देने वाले गुण एक भगवान् राम के भरोसे से ही प्राप्त हो सकता है। 


आवत हिय हरषै नहीं, नैनन नहीं सनेह। 

‘तुलसी’ तहाँ न जाइए, कंचन बरसे मेह॥ 


अर्थ-  इस गोस्वामी तुलसीदास जी के दोहे में उनका कहना है कि जिस घर में जाने पर घर के लोग देखते ही प्रसन्न न हो और जिनकी आंखों में स्नेह ना हो उसे घर में कभी नहीं जाना चाहिए चाहे कितना भी लाभ क्यों ना हो। 

गोस्वामी तुलसीदास की चौपाई

भगवान श्री राम के अनन्य भक्त गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित श्री रामचरितमानस की पावन चौपाइयां महज राम का गुणगान कि नहीं करती बल्कि साधक को तमाम विपत्तियों से उबारते हुए उसकी सभी कामनाओं को पूरा भी करती है। 


संकट दूर करने के लिए

दीन दयाल बिरिदु संभारी।

हरहु नाथ मम संकट भारी।।


कलह दूर करने के लिए

हरन कठिन कलि कलुष कलेसू।

महामोह निसि दलन दिनेसू।।


धन-संपत्ति प्राप्ति के लिए

जे सकाम नर सुनहिं जे गावहिं।

सुख सम्पत्ति नानाविधि पावहिंII


प्रेम बढ़ाने के लिए

सब नर करहिं परस्पर प्रीती।

चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीती।।


विद्या प्राप्ति के लिए

गुरु ग्रह गए पढ़न रघुराई।

अलपकाल विद्या सब आई।।


रोगों से मुक्ति के लिए

दैहिक दैविक भौतिक तापा।

राम काज नहिं काहुहिं व्यापा।।


भूत-प्रेत बाधा दूर करने के लिए

प्रनवउ पवन कुमार खल बन पावक ग्यान धुन।

जासु हृदय आगार बसहि राम सर चाप घर।।


नौकरी प्राप्ति के लिए

बिस्व भरन पोषन कर जोई।

ताकर नाम भरत अस होई।।


मुकदमे में विजय के लिए

पवन तनय बल पवन समाना।

बुधि विवके बिग्यान निधाना।।


शत्रु नाश के लिए

'बयरू न कर काहू सन कोई।

रामप्रताप विषमता खोई।।’


श्री रामचरितमानस के अतिरिक्त तुलसीदास जी द्वारा अवधी भाषा में रचित अन्य ग्रंथ इस प्रकार हैं:-


  • केशव,कहि न जाइ / विनय पत्रिका ।
  • सुन मन मूढ / विनय पत्रिका ।
  • हरि! तुम बहुत अनुग्रह किन्हों 
  • लाज न आवत दास कहावत ।
  • मैं केहि कहौ बिपति अति भारी ।
  • मेरे रावरिये गति रघुपति है बलि जाउँ ।
  • माधव, मोह-पास क्यों छूटै ।
  • देव! दूसरो कौन दीनको दयालु ।
  • हे हरि! कवन जतन भ्रम भागै ।
  • यह बिनती रहुबीर गुसाईं ।
  • और काहि माँगिये, को मागिबो निवारै ।
  • मैं हरि, पतित पावन सुने ।
  • मेरो मन हरिजू! हठ न तजै ।
  • तऊ न मेरे अघ अवगुन गनिहैं ।
  • माधव! मो समान जग माहीं 
  • ते नर नरकरूप जीवत जग ।
  • मन माधवको नेकु निहारहि ।
  • जो मन लागै रामचरन अस ।
  • भज मन रामचरन सुखदाई ।
  • अब लौं नसानी, अब न नसैहों ।
  • मन पछितैहै अवसर बीते। 

Tulsidas Ke Diksha Guru Kaun The| गोस्वामी तुलसीदास जी के दीक्षा गुरु कौन थे ?

(Tulsidas teacher name) गोस्वामी तुलसीदास के दीक्षा गुरु (Teachings of Tulsidas) नरहरी दास थे। नरहरि दास का जन्म उत्तर प्रदेश में रायबरेली जिले के पाखरौली नामक गांव में हुआ था। इनका संपर्क हुमायूँ, शेरशाह सूरी, सलीमशाह तथा रीवाँ नरेश रामचंद्र आदि शासको से माना जाता है बल्कि इनको सर्वाधिक महत्व अकबर ने प्रदान किया था। हालांकि इस बात का कोई भी स्पष्ट प्रमाण नहीं है। 

Goswami Tulsidas Ke Shiksha Guru Kaun The| गोस्वामी तुलसीदास जी के शिक्षा गुरु कौन थे ?

(Biography of Tulsidas in Hindi) गोस्वामी तुलसीदास जी की प्रारंभिक शिक्षा उनके गुरु (Tulsidas teacher name) नरसिंह दास जी के आश्रम में ही हुई थी। जब गोस्वामी तुलसीदास जी 7 वर्ष के थे तो उनके माता के देहांत के बाद शुरुआती शिक्षा-दीक्षा के लिए श्री अनन्तानन्द जी के प्रिय शिष्य श्रीनरहर्यानन्द जी (नरहरि बाबा) की आश्रम में चले गए। 


नरसिंह बाबा जी के आश्रम में रहते हुए तुलसीदास जी ने 14 से 15 साल की उम्र तक सनातन धर्म, संस्कृत, व्याकरण, हिन्दू साहित्य, वेद दर्शन, छः वेदांग, ज्योतिष शास्त्र इत्यादि की शिक्षा (Teachings of Tulsidas) प्राप्त की। अपनी शिक्षा को समाप्त करने के बाद तुलसीदास जी अपने निवास स्थान चित्रकूट वापस चले गए और लोगों को राम कथा, महाभारत कथा आदि सुनाने लगे। 

Tulsidas Meets Hanuman | तुलसीदास जी की हनुमान जी से मुलाक़ात| गोस्वामी तुलसीदास जी हनुमान बाहुक - कवि

अगर आप सभी को नहीं पता तो आपको बता दें कि तुलसीदास जी की रचनाओं में बहुत सी जगह पर हनुमान जी से मुलाकात (Tulsidas Meets Hanuman) का वर्णन किया गया है। तुलसीदास जी अपनी रचना में लिखते हैं कि जब वह वैराग्य धारण कर वाराणसी में रहने गए थे तो एक दिन बनारस के घाट पर तुलसीदास जी की मुलाकात (Tulsidas Hanuman story) एक साधु से हुई थी। 

Biography of Tulsidas In Hindi

उस साधु ने भगवा वस्त्र पहना था और राम नाम का जाप करते हुए गंगा की तरफ स्नान करने जा रहा था। उसी मार्ग से गोस्वामी तुलसीदास जी भी जा रहे थे चलते हुए अचानक से वे उस साधु से टकरा गए। तुलसीदास जी ने जब टकराने के बाद (Tulsidas Hanuman ji ka milan) उस साधु को देखा तो उन्होंने ऊंची आवाज में कहा कि हे साधु महाराज मैंने आपको पहचान लिया मैं यह जानता हूं कि आप कौन हैं। 


हे साधु महाराज मुझे क्षमा करें परंतु आप मुझे ऐसे छोड़कर नहीं जा सकते। तुलसीदास जी के इतना कहने पर साधु ने कहा कि ही तपस्वी भगवान राम आपका भला करेगाइतना कहकर साधु ने तुलसीदास जी को आशीर्वाद दिया और अपने स्थान की ओर आगे चले गए। फिर भी गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा कि मैं आपको नहीं जाने दूंगा क्यों क्योंकि मैं जानता हूं कि आप राम भक्त हनुमान है। यह बात सुनते ही हनुमान जी खुश हो गए और उन्होंने तुलसीदास जी को कहाकि जब तुम चित्रकूट आओगे तो तुम्हें भगवान राम के दर्शन भी होंगे।

तुलसीदास की राम भक्ति तथा राम व हनुमान दर्शन - Ram Bhakti and Ram Hanuman Darshan 

हम सभी जानते हैं कि गोस्वामी तुलसीदास जी राम के बहुत ही महान भक्त थे। राम की प्रति उनकी जो आस्था थी और उन्हें हमेशा यह विश्वास था कि एक दिन भगवान राम स्वयं उन्हें दर्शन देने आएंगे। उनकी इसी विश्वास ने इस बात को सच भी किया और उन्होंने अपनी रचना ‘भक्तिरस बोधिनी’ में इस बात का वर्णन भी विस्तार से किया है। तुलसीदास जी बहुत ही भाग्यशाली थे क्योंकि उन्हें सबसे पहले प्रभु हनुमान जी के दर्शन वाराणसी में हो गए थे (Tulsidas Hanuman ji ka milan) जहां पर अभी एक संकट मोचन मंदिर है। 


ऐसा माना जाता है कि (Tulsidas Hanuman story) प्रभु हनुमान जी ने ही श्री रामचरितमानस लिखने में तुलसीदास जी की सहायता बहुत ही विस्तार से की थी। हनुमान जी के द्वारा ही गोस्वामी तुलसीदास जी को यह बात पता चली थी कि राम से उनकी मुलाकात चित्रकूट में होगी। यह बात जानने के बाद से ही तुलसीदास जी चित्रकूट में रामघाट नामक जगह पर रहने लगे थे। अगर आप तुलसीदास जी की रचना विनय पत्रिका को पढ़ेंगे तो इसमें उन्होंने इस बात का वर्णन किया है कि किस प्रकार से उन्होंने राम के दो बार दर्शन हुए और वह उन्हें पहचान भी ना सके थे। 


लेकिन फिर भी तीसरी बार जब बाल रूप में स्वयं श्री राम जी ने उन्हें दर्शन दिए तब हनुमान जी के संकेत पर गोस्वामी तुलसीदास जी ने उन्हें पहचान लिया। गोस्वामी तुलसीदास जी अपने ज्ञान व भक्ति के बल पर आम मनुष्यों से ज्यादा भाग्यशाली और शक्तियों के स्वामी थे। अपने ज्ञान व सूझ-बूझ के कारण उन्होंने अनेक लोगों को स्वास्थ्य लाभ दिया और उनका जीवन भी बचाया। बादशाह अकबर भी तुलसीदास जी के ज्ञान व मानवता के कारण समर्पण की भावना दिखते थे और उन्हें सम्मान देते थे और उन्होंने गोस्वामी तुलसीदास जी को अपने मित्र का पद दिया था। 

Goswami Tulsidas Meets Ram | तुलसीदास जी की भगवान राम जी से मुलाक़ात

अगर आप पढ़ेंगे तो श्री रामचरितमानस में एक बहुत ही प्रसिद्ध प्रसंग मिलता है असल में जब गोस्वामी तुलसीदास जी भगवान राम की भेंट की घटना उस लेख में बताई गई है। श्री राम और गोस्वामी तुलसीदास जी की भेंट की घटना कुछ इस प्रकार है कि राम भक्ति में हमेशा लीन रहने वाले गोस्वामी तुलसीदास जी एक समय जब उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में स्थित चित्रकूट के रामघाट में आश्रम तैयार कर रहे थे। फिर एक दिन तुलसीदास जी कामदगिरि पर्वत की परिक्रमा करने चले गए। 


वहां पर गोस्वामी तुलसीदास जी ने दो राजकुमारों को घोड़े पर सवार आते देखा लेकिन तुलसीदास जी ना तो उन दोनों राजकुमारों को पहचान सके और ना ही उन दोनों राजकुमारों के बीच अंतर भी जान सके। इस घटना के बादजब अगली सुबह हुई तब नदी के किनारे घाट पर तुलसीदास जी चंदन का लेप बना रहे थे तो दो राजकुमार तपस्वी का भेष बनाकर तुलसीदास जी के आश्रम में आ गए। राजकुमारों को देखते ही तुलसीदास जी उनको पहचान गए कि ये भगवान राम और उनके भाई लक्ष्मण है। 


गोस्वामी तुलसीदास जी ने राजकुमारों को देखते ही कहा कि हे भगवान मैं आपको पहचान गया और मैं आपको प्रणाम करता हूं। मेरी इस गरीब सी कुटिया में आप दोनों का स्वागत है। इसके बाद भगवान श्री राम तुलसीदास जी के पास चले गए और उनसे चंदन के लेप का तिलक मांगा। फिर गोस्वामी तुलसीदास जी ने प्रसन्नता से भगवान राम के माथे पर तिलक लगाया और उनके पैरों को छूकर आशीर्वाद लिया। इसी तरह से भगवान श्री राम और गोस्वामी तुलसीदास जी का मिलन हुआ। 


चित्रकूट के घाट पर, भइ सन्तन की भीर।

तुलसिदास चन्दन घिसें, तिलक देत रघुबीर॥


भगवान राम से मुलाकात के संबंध में तुलसीदास जी इस दोहे के द्वारा बताते हैं किभगवान राम की मनमोहक अद्भुत छवि को देखकर वह मंत्र मुक्त हो गए और अपना शुद्ध-बुद्ध खो बैठे। जब भगवान श्री राम ने तुलसीदास जी को तिलक लगाने को कहा तब उन्हें यह ज्ञात हुआ कि यह प्रभु श्रीराम जी ने भी उन्हें पहचान लिया है। तुलसीदास जी ने श्री राम को चंदन का तिलक लगाया और भक्ति अवस्था में लीन होकर अंतर्ध्यान हो गए। 

Goswami Tulsidas Death Place | गोस्वामी तुलसीदास की मृत्यु कहां हुई? 

गोस्वामी तुलसीदास की मृत्यु कहां हुई? इतिहास के रचयिता का मानना है कि गोस्वामी तुलसीदास जी जीवन (Biography of Tulsidas in Hindi) की अंतिम समय में वाराणसी में ही रहा करते थे। जब उनके जीवन के अंतिम चरण चल रहे थे तब गोस्वामी तुलसीदास जी की दिनचर्या पूरी तरह से राम भक्ति में ही लीन रहते थी। जब गोस्वामी तुलसीदास जी की उम्र 112 साल हो गई थी तब वाराणसी में उन्होंने समाधि लेकर 1623 ई० में अपना शरीर त्याग दिया। 


परंतु कुछ विद्वानों का यह मानना है कि तुलसीदास जी की मृत्यु 1623 में न होकर 1600 ईस्वी में हुई थी जब श्रावण कृष्ण तृतीया शनिवार को राम नाम का जाप कर रहे थे। जब तुलसीदास जी का अंतिम समय चल रहा था तब उन्होंने ‘विनयपत्रिका’ नाम की एक पुस्तक लिखी थी जिस पर भगवान श्री राम ने स्वयं अपने हस्ताक्षर दिए थे। गोस्वामी तुलसीदास जी का नाम देश और दुनिया में हमेशा ही अमर रहेगा।

Goswami Tulsidas Jayanti 2024 Date | तुलसीदास जयंती 2024 

गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म श्रावण माह में शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन हुआ था अतः इसी दिवस को (Goswami Tulsidas Jayanti) तुलसीदास जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। 2024 मे गोस्वामी तुलसीदास जयंती 11 अगस्त दिन रविवार को मनाई जाएगी। 2024 में गोस्वामी तुलसीदास जी (Goswami Tulsidas Ji) की 527वीं जन्म तिथि है। 

Goswami Tulsidas Jayanti Celebration | तुलसीदास जयंती कैसे मनाते हैं 

असल में गोस्वामी तुलसीदास जी जयंती (Goswami Tulsidas Jayanti) के अवसर पर स्कूलों में विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इन कार्यक्रमों में मुख्य रूप से लोग निबंध या दोहे लिखने की प्रतियोगिताएं करते हैं जैसे की डिबेट, दोहे गानेी अंताक्षरी इत्यादि प्रतियोगिताएं होती हैं। कई जगहों पर मंदिरों में पूजा अर्चना, (Tulsidas Ramayan) रामायण पाठ आदि कार्यक्रम भी होते हैं तथा लोग ब्राह्मण को भोज भी खिलाते हैं।

अंतिम शब्दों में

मुझे उम्मीद है आपको हमारी लेख (Biography Of Goswami Tulsidas In Hindi) गोस्वामी तुलसीदास जी की जीवनी काफी पसंद आई होगी। हमने गोस्वामी तुलसीदास जी की बायोग्राफी (Biography of Tulsidas In Hindi) बहुत ही बिस्तर में लिखी है किस प्रकार गोस्वामी तुलसीदास जी ने जीवन में परिश्रम करके ऐसी महान रचना को लिखा है जिसके कारण देश उन्हें आज भी याद करता है। 


गोस्वामी तुलसीदास बायोग्राफी इन हिंदी (Goswami Tulsidas Biography in hindi) से आप काफी खुश होंगे और आपके मन में आस्था भी जागेगी। अगर आपके मन में कोई और महान हस्ती है जिसकी जीवनी हमें लिखनी चाहिए तो कृपया करके हमें कमेंट बॉक्स में बताएं और यह सब जानकारी अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें।






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